मरासिम से मिली एक ग़ज़ल – आखों में जो भर देती है नमीं

पेश-ऐ-खिदमत है आपके लिए उस ग़ज़ल के अल्फाज़ कि सुनकर जिसे आ जाती है आखों में नमीं। जगजीत साहब कि गई इस ग़ज़ल में डरा है तक अपना सा गहरा कि दर्द के इस दरिया को यूँ ही मापा नहीं करते – हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करतेवक्त कि शाख से लम्हे नहीं … Read more