यदि कभी आप कुछ प्रस्तुत कर रहे हैं एवं आपने उसपर शोध किया है तो यह आवश्यक नहीं है कि आपने सम्पूर्ण जानकारी एकत्रित कर ली है। आपका शोध अत्यंत सराहनीय है, किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि आप किसी द्वारा विनीत/ निवेदित संदेश तो अनदेख कर दें। भरतिया इतिहास पर कई पक्ष हैं एवं प्रत्येक पक्ष का अपना एक शोध है।
मुझे सर्वदा (पाठशाला के समय से) भारतीय इतिहास में अत्यंत रुचि रही है अतः मैं भरतिया इतिहास को पौराणिक कथा नहीं ऐतिहासिक सत्य मानता हूँ। जिसे हमारे लिखित इतिहास में पौराणिक कथा कहा गया है, वह मात्र कथा नहीं है, उसका पुरातात्विक साक्ष्य मिला है। एवं इस पुरातात्विक सांख्य ने सनातन धर्म को वैश्विक स्तर पर विस्त्रत स्थान दिया है। मात्र लिखित इतिहास (जो स्वाधीनता के बाद लिखा गया) उसमें सत्य को दबा कर मात्र विगत १००० वर्षों का इतिहास लिखा गया। इसमें भी भारत का नहीं, आक्रांताओं का ऐतिहासिक महिमा मंडन किया गया है।
भारतीय इतिहास में विज्ञान सर्वोपरि रहा है। प्रत्येक लेख में, प्रत्येक शिक्षण में विज्ञान का प्रभुत्व दिखता है। किंतु हमारी पाठशालाओं में इसे मात्र एक पौराणिक कथा का नाम दे दिया गया है। एवं यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण परिस्तिथि है कि आज का युवा सनातन धर्म को मानने से व्यथित होता है। उन्हें हिंदू धर्म का नाम अधिक प्रिय है, किंतु उसमें भी उन्हें धर्म से घृणा ही होती है।
मैंने अपने साथियों से एवं जिनसे मैं जुड़ा हूँ, उनसे एक ही प्रश्न करता हूँ, हिंदू शब्द की उत्पत्ति कब और कैसे हुई? क्या हिंदू एवं हिंदी शब्द इस भारत में भारतीय जनो ने प्रारम्भ किया है? उत्तर है नहीं!
मेरा पाठकों से यही निवेदन है कि आप जब हिंदू पौराणिक कथाओं का उल्लेख करें तो उसे सनातन इतिहास से सम्बोधित करें। इसमें नकारात्मक सोच नहीं है, यह सत्यता से आपको परिचित करवाने का प्रयंत है। एवं यदि आपको शोध करना है तो इतिहास पर शोध करें, पौराणिक कथाओं को आडंबर मान कर नहीं।
भारतीय / सनातन इतिहास के वैज्ञानिक तथ्यों पर और जानकारी आपके लिए शीघ्र प्रस्तुत करूँगा