gar nazron mein unki

गर तनहाई में खुदा का दीदार मयस्सर ना होगर जुदाई में मोहब्बत का दर्द शामिल ना होगर झुकी इन पलकों में हया का डेरा न होक्या कहूँ में ऐ मेरे मौला गर ज़िन्दगी में जूनून का असर ना होगर जुल्फों में उनकी मेरा आसरा न होगर नज़रों में उनकी मेरी तस्वीर ना होकि ये मोहब्बत … Read more

चाहत

गर हम दिन के पहलु में बैठेंया रात के आगोश में समां जाएंशाम-इ-सनम हमें न मिल सकेगीदीदार-इ-सनम न हो सकेगागर चाहत सनम कि है दिल मेंशाम का पहलु ना छूट सकेगा

इन्तेजार-ए-सनम

नाम गर लिखा हो सनम का शाम परजा उसके आगोश में उसका दीदार करउसकी साँसों के तरन्नुम में खो करअपने इश्क का इज़हार कर गर ना हो एतबार अपने लबों पर अपनी आँखों से तू बयान कर गर गिला हो कोई तो खुदा से अर्ज़ करमिलेगा तुझे भी सनम इंतज़ार करकि है क्या मज़ा उस … Read more

मेरा अक्स

गर खुदा ने कभी मुझसे कहा होता… रुखसत हो तू हो फारिग अपनी कलम सेमैं कहता ऐ-खुदाये कलम है मेरी ज़िन्दगी मेरी तमन्नाकि ना कर इसको जुदा तू मुझसेन कर मेरे इश्क को रुसवागर कहीं मैं हूँ कगार परतो यही है वोह मेरा अक्स….

वक़्त नहीं

आज के दौर में हर किसी को बहुत कुछ पाने कि चाह है और इस चाह में उन्हें अपनों का ध्यान नहीं, ना ही उनके पास वक़्त है अपनो के लिए| इस कविता में कवी ने उसे बड़े ही नायब तरीके से ज़ाहिर किया है| ये कविता किसने लिखी ये मुझे इल्म तो नहीं, लेकिन … Read more

Unka Nasha

उनका नशा है कि छुटता नहींकदम हैं कि रुक कर उठते नहींन उन्होंने हमें यूँ मुड के देखान हमनी कभी संभल कर चलना सीखाराह तकते उनकी झरोखों में दिए जलाया करते हैंभूलकर कि हवा के झोंकों से दिए नहीं जला करतेखून कि रोशनाई बना कर लफ्ज लिखे थे ख़त मेंकि तूफ़ान में वोह लफ्ज भी … Read more

कशमकश

सोचते हैं अक्सरकि कुसूर क्या है हमारायूँ क्यों होता है दर्द दिल मेंकहते हैं फलसफा ज़िन्दगी काआज जब कहा उनसेकि दिक्कते यूँ पेश आती हैंकह दिया उन्होंने भीवही शिकवा हमसेरुसवा ईन हो गए वोकि मोड़ लिया रुख हमसेसोचा न एक पल कोकी हम कहाँ जाएंगेछोड़ हमें चले वो राह अपनीना जाने कब आएँगेज़िन्दगी तुझसे क्या … Read more

खड़े सिफर की कगार पर

खड़े हैं सिफर सी जिंदगी के मोड़ परआशय विहीन राह कि खोज परदेखते कतरे ज़िन्दगी के बिखरतेमानो है कोई कश्ती तूफ़ान में डूबते उतरते है एक इशारा ये खुदा काकि ना समझ पाएंगे क्यूँ हुआ इतना फख्रहै फ़िर भी दिल में ये जज्बाकि मिलेगी राह एक आगाज़ को अपनी मुस्कराहट से क्या तुम दिला सकते … Read more

मरासिम से मिली एक ग़ज़ल – आखों में जो भर देती है नमीं

पेश-ऐ-खिदमत है आपके लिए उस ग़ज़ल के अल्फाज़ कि सुनकर जिसे आ जाती है आखों में नमीं। जगजीत साहब कि गई इस ग़ज़ल में डरा है तक अपना सा गहरा कि दर्द के इस दरिया को यूँ ही मापा नहीं करते – हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करतेवक्त कि शाख से लम्हे नहीं … Read more

दर्द-ऐ-दिल

कि अभी तो हुई शुरू बात दिल कि हैऔर अभी तुम जाते होकि अभी तो नासूर–ऐ–दिल को छेड़ा हैऔर तुम जाते होकि अभी तो खून–ऐ–जिगर बाकी हैऔर तुम जाते हो ऐ दोस्त जुल्म यूँ न करन हो गर हिम्मत–ऐ–नज़र छेड के दास्ताँ–ऐ–जिगर हमें यूँ बेजार न कर